- घंटों बाधित रहा आवागमन
मधुपुर/संवाददाता। मधुपुर-गिरिडीह एनएच 114-ए खलासी मोहल्ला मोड़ पर वन कार्यालय के समीप मुख्य पथ पर बुधवार की देर रात अचानक एक गुलमोहर का पेड़ गिर जाने से बड़ा हादसा टल गया। संयोगबस एनएच सडक से गुजर रहे वाहनों को कोई क्षति नहीं हुई। घटना के बाद रूलर एरिया में बिजली बाधित हो गया। कई मोहल्लों में बिजली ठप हो गई। मुख्य सड़क पर पेड़ गिरने से आवागमन बाधित हो गया। सूचना पर बिजली विभाग के अधिकारियों ने रूलर क्षेत्र में बिजली काट दिया। घटना की सूचना पुलिस समेत वन विभाग और संबंधित अघिकारियो को दी गई।
वन विभाग के अधिकारियों ने लोगों को बुलाकर पेड़ को काटकर सड़क से हटाया। रात 10.30 से 12 बजे तक एनएच पर वाहनों का आवागमन प्रभावित रहा। सवारी वाहन में यात्रा कर रहे लोग और राहगीरों को काफी परेशानी हुई। बता दे दो दिन पूर्व इसी सडक पर लॉर्ड सिंहा पथ पर पेड़ गिर जाने से घंटों यातायात बाधित रहा था। संयोगवश यहां भी किसी तरह जान माल की क्षति नहीं हुई थी। इघर श्यामा प्रसाद मुखर्जी विद्यालय के सामने सुखा हुआ पेड़ मौत को आमंत्रण दे रहा है। इसकी सूचना प्रशासन को भी दी गई है लेकिन प्रशासन मौन है। नगर परिषद कार्यपालक पदाधिकारी सह एसडीओ आशीष अग्रवाल ने नगरकर्मीयो को जाचँ का सूखे पेड़ को हटाने की बात कही थी । लेकिन अब तक सूखा पेड़ नहीं हटाया गया है।
ग्रेटेस्ट बंगाली ऑफ ऑल टाइम : काजी नजरुल इस्लाम
- 124वीं जन्मदिन पर विशेष
मधुपुर/संवाददाता। 20 वी सदी के एक प्रमुख बंगाली कवि और संगीतकार थे काजी नजरुल इस्लाम। महान विद्रोही कवि काजी नज़रुल इस्लाम की 124वीं जयंती पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए झारखंड बंगाली समिति के प्रदेश अध्यक्ष विद्रोह कुमार मित्रा बताते हैं।
मात्र 23 वर्ष के साहित्यिक जीवन में सृजन की प्रचुरता अतुलनीय थी। बाल्यकाल में ही पिता को खो देने वाला कवि को बड़ी मुश्किलों के बीच जीवित रहना पड़ा था। भीषण आपदा के बावजूद माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण किए बिना एक सैनिक के रूप मे सेना में शामिल हो गए। सैन्य जीवन के लगभग ढाई वर्ष की अवधि में, वे बंगाल रेजिमेंट मे सेवा करते हुए फारसी सीखा। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया। युद्ध समाप्ति के बाद उन्हंे सेना से छटनी कर दिया गया।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद अपरिहार्य निराशा के कारण युवा विद्रोही हो गए। प्रथम विश्व युद्ध से लैट रहे नजरुल की कविता ने उस विद्रोही युवा के कदमों की आहट धीमी का दी। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विद्रोही कवि नजरुल को विस्मित स्नेह के साथ स्वीकार किया। 1926 में हिन्दू मुस्लिम दंगों ने नजरुल को बुरी तरह हिलाकर रख दिया। इस अवसर पर कवि ने ‘हिन्दू मुस्लिम ”पथेर दिशा” मंदिर और मस्जिद आदि निबंध लिखें। उन्होंने ही सबसे पहले शिक्षा दी थी, मेरे एक ही डंठल मे दो पीले फूल है, हिन्दू-मुसलमान। मुसलमान है उनकी आंखों का रत्न, हिन्दू है उनकी आत्मा। वह स्वामी विवेकानंद की तरह चंडाल, मोची, सफाई कर्मी सभी भारतीयों को एक सीट पर देखना चाहते थे। सामाजिक पतन और अन्यायपूर्ण अन्याय ने उन्हे बहुत व्यथित किया। नजरुल का निजी जीवन भी कष्टमय रहा। 1924 में प्रमिला सेनागुप्ता से शादी की। अपनें दो पुत्रो की असामयिक मृत्यु से वे मानसिक रूप से व्याकुल थे। 1940 मे पत्नी लकवाग्रस्त हो गई। नजरुल कभी जाति,धर्म से बंधे नही थे। उनके बड़े बेटे सव्यसाची की शादी एक हिन्दू ब्राह्मण लड़की उमा मुखोपाध्याय से हुई थी।
पांच अप्रैल 1941 को नजरुल ने कोलकाता के मुस्लिम संस्थान हॉल मे मुस्लिम साहित्य परिषद के जयंती समारोह मे अपना अंतिम भाषण दिया। वहां उन्होंने विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की मुक्ति, ब्रिटिश विरोधी आंदोलन, सांप्रदायिक सद्भाव आदि का उल्लेख किया। उन्होंने अपने लेखन के बारे मे टिप्पणी किया था। “मुझे नही पता कि मैं कविता, कहानियों और निबंधों मे बांग्ला साहित्य में क्या योगदान दे पाया हूं, लेकिन बांग्ला गान के विकास में, मैं अपनें संगीत मे कुछ ऐसा देने मे सक्षम हुआ हूं कि जिसके लिए भारत के लोग मुझे एक दिन याद करेंगे। बंगबंधु शेख मुजिबुर रहमान लंबी बीमारी के कारण 1972 मंे काजी नजरुल इस्लाम को स्वतंत्र राज्य बांग्लादेश ले आए।
29 अगस्त 1976 को महान कवि ने ढाका पीजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनकी इच्छा के अनुसार कवि को ढाका विश्वविद्यालय के मस्जिद परिसर मे राजकीय सम्मान के साथ दफनाया गया। इस तरह भारत के पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले के आसानसोल उपमंडल के जमुरिया थाना अंतर्गत चुरूलिया गांव में जन्मे काजी का सफर बांग्लादेश जाकर समाप्त हुआ।