बिंदापाथर/संवाददाता। आदिवासी समाज का प्रमुख पर्व सोहराय को लेकर एक सप्ताह से खुशी और सौहार्द का वातावरण बना हुआ है। लोग सोहराय के रंग में सराबोर हैं। प्राचीन परंपरा के अनुसार खुंटेउ अनुष्ठान गांव-गांव में आयोजित किया गया। इस अवसर पर फसल उगाने वाले मेहनतकश बैलों की कद्र ही कुछ अलग होती है। मुख्य फसल धान उगाने के कारण इस मवेशी को गो-देवता के रूप में भी पूजा जाता है। अनुष्ठान के दौरान बैल के सिंग में तेल-सिंदूर लगाने के साथ-साथ उसके अंग-अंग को सजाया जाता है। गले में नयी फसल धान व पकवान की माला पहनायी जाती है। फिर भक्ति प्रकट करते हुए बैल के चारों ओर नृत्य-गीत प्रस्तुत किया गया। मांदर की थाप से पूरा क्षेत्र उत्साहित हो उठा। गौरतलब है कि सोहराय पर्व की हरेक गतिविधि में सिरिंग यानी गीत-संगीत के माध्यम से प्राचीन संस्कृति को तरोताजा किया जाता है। आदिवासी समाज के जानकार बताते हैं कि इस अनुष्ठान के दौरान बैल की गोहाल से लेकर गांव और मैदान में श्रद्धाभक्ति के साथ पूजा-वंदना की जाती है।