नदी किनारे बसे गांवों के किसानों की चिंता बढ़ायी
महेशपुर/संवाददाता। पर्यावरण असंतुलन के कारण बांसलोई नदी का अस्तित्व इन दिनों खतरे में पड़ गयी है। जिस नदी की पहचान बालू और पानी से होती थी आज वह जगह घास और कांसी के फूल ने ले ली है। जिससे लोग नदी में पानी और बालू देखने को तरस रहे हैं। लोग कहते सुने जाते हैं कि आखिर कहां गया नदी का बालू और बालू के साथ-साथ नदी में पानी भी नहीं है। जिससे लोग काफी परेशान दिख रहे हैं। आखिर नदी की ऐसी स्थिति कैसे हुई। कौन है इसका जिम्मेवार कोई तो बताये। बताते चलें कि आमड़ापाड़ा प्रखंड सीमा क्षेत्र से महेशपुर प्रखंड के बासमती गांव से लेकर बंगाल सीमा से सटे सोनारपाड़ा तक लगभग 30 से 35 किमी की दूरी है और जिसके बीच में लगभग दो दर्जन से अधिक ऐसे गांव बसे हैं जो बांसलोई नदी से कभी लाभ पाते थे। कुछ ऐसे गांव हैं जहां के किसान उक्त नदी की पानी से सिंचाई करते थे। परंतु इन दिनों नदी की स्थिति को देख वे चिंतित हैं।