गोड्डा। कार्यालय संवाददाता जिला समाज कल्याण विभाग के द्वारा सुपोषित गोड्डा कार्यक्रम के अंतर्गत तीन दिवसीय जिला स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिला समाज कल्याण पदाधिकारी कलानाथ, अंचलाधिकारी मेहरमा सुनील कुमार, रांची से आए बतौर प्रशिक्षक डॉ संतोष कुमार सोरेन ने दीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का शुभारंभ किया। मौके पर डॉ सोरेन ने सर्वप्रथम कुपोषण को परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि शरीर के लिए आवश्यक सन्तुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलना ही कुपोषण है। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। कुपोषण के कारण बच्चे की रोगों से लड़ने की क्षमता घट जाती है और संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। संक्रमण के कारण बच्चे की भूख तथा खाने की इच्छा कम हो जाती है। पोषक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है और पोषक तत्वों का अवशोषण कम होता है, जिसके कारण बच्चे की पोषणात्मक स्थिति और दयनीय हो जाती है। इस प्रकार बच्चा एक दुष्चक्र में फंस जाता है। एक कुपोषित बच्चा जिसकी रोगों से लड़ने की क्षमता कम होती है, वह अधिक समय तक बीमार रहता है। कुपोषण की गंभीरता और अधिक बढ़ जाती है तथा रोगों से लड़ने की क्षमता और घट जाती है। यह दुष्चक्र चलता रहता है और इसे ही हम कुपोषण तथा संक्रमण का दुष्चक्र कहते हैं। कार्यक्रम के दौरान प्रेजेंटेशन के माध्यम से कुपोषण और उसके होने वाले प्रभाव को बताया गया। बच्चे के स्वास्थ्य एवं जीवन पर कुपोषण का प्रभाव पड़ता है। इससे शारीरिक वृद्धि कम होती है। बौद्धिक विकास भी कम होता है। संक्रमण एवं मृत्यु के जोखिम में वृद्धि होती है। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होने वाली मृत्यु के कारणों में कुपोषण का अत्यधिक योगदान है। क्योंकि कुपोषित बच्चों में बीमारी का संक्रमण होने की अधिक सम्भावना होती है। अत: बार-बार बीमार पड़ते हैं और उन्हें पुन: स्वस्थ होने में काफी समय लग जाता है। सामान्य पोषण स्थिति वाले बच्चों की तुलना में कुपोषित बच्चों को सामान्य बीमारियां जैसे दस्त. निमोनिया आदि का खतरा अधिक होता है।उन्होंने बताया कि कुपोषण को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। अति गंभीर कुपोषण एवं मध्यम गंभीर कुपोषण । अति गंभीर कुपोषण की श्रेणी में वे बच्चे आते हैं जिनकी लंबाई, ऊंचाई के अनुसार बहुत कम वजन होता है तथा दोनों पैरों में गड्ढे पड़ने वाली सूजन होती है। मध्यम गंभीर कुपोषण के शिकार ऐसे बच्चे जिनकी लंबाई , ऊंचाई के अनुसार वजन तीन एसडी से दो एसडी के मध्य होता है। जिन बच्चों के दोनों पैरों में गड्ढे पड़ने वाली सूजन (एडिमा) न हो, उन्हें इस श्रेणी में वर्गीकृत किया जाता है। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला समाज कल्याण पदाधिकारी कलानाथ के द्वारा बताया गया कि अति गंभीर कुपोषित बच्चों के समुदाय आधारित प्रबंधन “सुपोषित गोड्डा ” कार्यक्रम के अंतर्गत सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में जो भी 0 से 5 साल के बच्चे हैं, उन सभी का स्क्रीनिंग करते हुए उनमें से उनके समतुल्य बच्चों की खोज करनी है। तत्पश्चात यह निर्धारित किया जाएगा कि उन कुपोषित बच्चे का इलाज किस स्तर पर किया जाएगा। यदि बच्चे अति गंभीर कुपोषित पाये जाते हैं तो उस तरह के बच्चों को एमटीसी भेजा जाएगा और यदि बच्चा अति गंभीर कुपोषित नहीं है तो सामुदायिक स्तर पर ही बच्चों का प्रबंधन किया जाएगा। मौके पर अंचलाधिकारी मेहरमा सुनील कुमार, सीडीपीओ गोड्डा सदर, यूनिसेफ के प्रतिनिधि रूपक दीक्षित एवं महिला पर्यवेक्षक सहित कार्यालय कर्मीगण मौजूद थे।