मधुपुर/संवाददाता। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जन-गण-मन अधिनायक कविता की रचना कर देश को राष्ट्रीय भावनाओं और विचारों से प्रफुल्लित कर दिया। देश ऐसे महानपुरुष को 162वें जन्मदिन पर उन्हे श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा है। वे बांग्लादेश के राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्लादेश ‘के अमर रचनाकार शिल्पी भी थे। झारखंड बंगाली समिति के प्रदेश अध्यक्ष विद्रोह कुमार मित्रा बताते हैं कि 1902 मंे उन्होने शांति निकेतन के नाम से अपने गांव बोलपुर मे कुछ लड़कों, लड़कियां और शिक्षकों के साथ स्कूल शुरू किया था।
यहां छात्रों को अध्ययन और सेवा का एक सरल जीवन व्यतीत करने की कला सिखायी जाती थी। पेड़ की छाया मे कक्षाएं खुलीं हवा में कक्षाएं चलती थी। छात्र सीमेंट की बेेंचों पर बैठते थे। शिक्षकों के लिए थोड़ा ऊंचा सीमेंट वाला मंच होता था। यह एक अभ्यास जिसका अभी भी विश्वविद्यालय और उनके छात्रों द्वारा पालन किया जाता है। उन्हंे शिक्षा का सही अर्थ मालूम था। इनके अनुसार, सर्वोत्तम शिक्षा वही है, जो संपूर्ण दुनिया के साथ-साथ हमारे जीवन का भी सामंजस्य स्थापित करती है। हिन्दी साहित्य में टैगोर का योगदान बहुत ही बड़ा और अविस्मरणीय रहा है। बहुत छोटे से उम्र में ही उनकी पहली कविता अभिलाषा एक तत्व भूमि नाम की पत्रिका में छपी थी। उन्होंने कल्पना, सोनार तोरी, गीतांजलि, आमार सोनार बांग्ला, घरे बाइरे, चित्रांगदा, मालिनी, गोरा जैसे अनेक उपन्यास, कविता और लघुकथाओं की रचना की। 1913 में इनकी रचना गीतांजलि के लिए उन्हंे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद का “गीतांजलि:सांग ऑफ रिंग्स” संस्करण एक नवंबर 1912 को इंडियन सोसाइटी ऑफ लंदन” द्वारा प्रकाशित हुआ। रवीन्द्रनाथ टैगोर को प्रकृति की सानिध्यता काफी पसंद थी। कभी-कभी नाव लेकर बीच नदी मे बने टापू पर जाया करते थे। घंटो निर्जन प्रकृति को निहारते रहते।
झारखंड के रांची स्थित सांस्कृतिक धरोहर टैगोर हिल टैगोर परिवार के नाम से जाना जाता है। यहीं पर उन्होने 1924 मे बाल गंगाधर तिलक द्वारा मराठी मंे लिखित रहस्य नामक पुस्तक का बांग्ला में अनुवाद किया था। प्रकृति की गोद मे मनमोहक दृश्य समेटे इस पहाड़ी की बुनियाद पर रामकृष्ण मिशन आश्रम भी स्थित है। रवीन्द्रनाथ टैगोर और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा वैचारिक मतभेद रहा था। महात्मा गांधी मानवता को राष्ट्रवाद से कम महत्व दिया करते थे। वही रवीन्द्रनाथ टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्व देते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर का व्यापक दृष्टिकोण जो कि उनके अंतरराष्ट्रवाद और मानवतावादी दृष्टिकोण मे इंगित होती है जो तात्कालिक वैश्विक परिवेश मे आज भी प्रासंगिक है, लेकिन दोनों एक दूसरे को बहुत अधिक सम्मान करते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को “महात्मा “का विशेषण प्रदान किया, तो गांधी जी ने रवीन्द्रनाथ टैगोर को ‘गुरुदेव’ विशेषण से संबोधित किया। आज दोनों का परस्पर एक-दूसरे का संबोधन विश्व भर में व्यक्तिवाचक बन गया है।