देवघर/नगर संवाददाता। स्वास्थ विभाग में आउटसोर्सिंग के आधार पर अनुमंडलीय अस्पताल मधुपुर में कार्यरत चार सुरक्षा प्रहरियों को बिना वजह गलत तरीके से हटाए जाने और योगदान की तिथि से कम वेतन देने के खिलाफ श्रम न्यायालय देवघर में वाद दायर किया है। जिसमें फ्रंट लाइन कंपनी के देवघर ्रइंचार्ज पवन कुमार, कंपनी के राज्य प्रमुख तथा सिविल सर्जन देवघर को पार्टी बनाया गया है। फाल्गुनी प्रसाद यादव, कृष्णा प्रसाद यादव, श्रीप्रसाद यादव तथा राम आशीष दास को फ्रंटलाइन कंपनी के देवघर जिले के सुपरवाइजर कर्मचारी पवन कुमार द्वारा पत्र देकर सेवा से हटा दिया गया था। जिसके बाद इन लोगों ने बहुत कोशिश की लेकिन पुन: वापस नहीं किए जाने पर इन लोगों ने श्रम न्यायालय में वाद दायर किया है। पत्र में जिक्र है कि होमगार्ड को रखने संबंधित उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में इन्हें हटाया जा रहा है, लेकिन न्यायालय के आदेश में सिर्फ होमगार्ड को प्राथमिकता के आधार पर चयन करने की बात कही गई है ना की किसी को हटाकर इन्हें रखने का आदेश है। वहीं न्यायालय के नाम पर आउटसोर्सिंग कंपनी तथा विभाग की मिलीभगत से मनमानी किया जा रहा है और चुन-चुन कर लोगों को हटाया जा रहा है। जिसके बाद इन लोगों के द्वारा न्यायालय में वाद दायर कर पुन: वापस सेवा में रखने की मांग की गई है। कंपनी नियम के मुताबिक एक माह पहले नोटिस देने और इंक्वायरी के बाद ही किसी को हटाया जा सकता है, लेकिन किसी नियम का पालन नहीं किया गया। वहीं दायर बाद में इन लोगों द्वारा निर्धारित वेतन से बहुत कम पारिश्रमिक के भुगतान की बात कही गई है। इन लोगों के द्वारा बताया गया है कि वर्ष 2018 में उन्हें 6000 रुपए दिया जा रहा था। 2019 में 7300, 2020 में 7800, 2021 से 8500, 2023 में 9100 का भुगतान किया जा रहा है। जबकि सिविल सर्जन देवघर द्वारा 25 मई 2023 को संयुक्त सचिव झारखंड सरकार को भेजे गए पत्र में स्पष्ट जिक्र है कि 95 गार्ड के वेतन मद में 2033095 रुपए मासिक यानि एक गार्ड को 21401 के दर से भुगतान किया जा रहा है। इस पत्र के आधार पर इन लोगों ने वर्ष 2018 से अब तक के इनके वेतन का अंतर जो इन्हें नहीं दिया गया है उसके भुगतान की मांग की गई है। इस तरह प्रति गार्ड 1029792 रूपये के अंतर की राशि के ऊपर दावा ठोका है। ज्ञात हो कि देवघर जिले के स्वास्थ विभाग में आउटसोर्सिंग के तहत करीब 500 कर्मचारी विभिन्न पदों पर काम कर रहे हैं और सबों के पारिश्रमिक हेतु जो निर्धारित राशि सरकार द्वारा दी जा रही है उसमें से 50 प्रतिशत से अधिक की राशि कंपनी और विभाग द्वारा मिलीभगत कर उन्हें नहीं दिया जा रहा है। यह एक बड़े गबन की ओर भी इशारा कर रहा है। यदि 95 सुरक्षा गार्ड के दावे की ही बात करें तो सिर्फ इन लोगों के वेतन से अब तक दस करोड़ रुपए से अधिक का गबन किया गया है। यदि आउटसोर्सिंग के तहत विभिन्न पदों पर नियुक्त सभी कर्मचारियों को सरकार के द्वारा निर्धारित पारिश्रमिक और भुगतान किए जा रहे पारिश्रमिक को मिलाया जाए तो करोड़ों का अंतर स्पष्ट परिलक्षित होता है। इस आधार पर सालाना आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के वेतन में करोड़ों रुपया के हेराफेरी की बात का खुलासा हो सकता है। न्यायालय में केस के होने के बाद स्वास्थ्य विभाग में आउटसोर्सिंग के तहत आने सभी पदों पर कार्यरत कर्मचारी भी न्यायालय की शरण में नियुक्ति की तिथि से निर्धारित पारिश्रमिक के भुगतान से मांग के लिए जाने का मन बना लिया है। हटाए गए कर्मचारियों ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग के आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के पारिश्रमिक में हेराफेरी के मामले की बड़े पैमाने पर जांच हो तो कंपनी सहित स्वास्थ विभाग के दर्जनों कर्मचारियों और पदाधिकारियों की गर्दन इसमें फंस सकती है।