- शस्त्र अनुज्ञप्तिधारी अधिवक्ताओं ने भारत सरकार के गृह मंत्री को प्रेषित किया ज्ञापन
गोड्डा। जिला में शस्त्र अनुज्ञप्ति के नवीनीकरण की प्रक्रिया अति कठिन होने के कारण लाइसेंस धारी काफी परेशान हो रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर शस्त्र अनुज्ञप्तिधारी स्थानीय अधिवक्ताओं ने सामूहिक हस्ताक्षर के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नाम अपनी अर्जी स्पीड पोस्ट से प्रेषित की है ‘
केंद्र सरकार के गृह मंत्री को प्रेषित ज्ञापन में अधिवक्ताओं ने अरुण कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, कपिल देव सिंह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, अशोक कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, द्विवेदी सुरेन्द्र अधिवक्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, अलीम जंग खान बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, ऋषिकांत चौबे बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, गणेश प्रसाद बनाम बोर्ड ऑफ रेवेन्यू, अमर प्रताप वगैरह बनाम बिहार राज्य लोकहित याचिका सहित कुल एक दर्जन मामलों में दिये गए फैसले का हवाला एवं साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि लाइसेंसिंग अथॉरिटी किसी भी व्यक्ति को कोई भी शस्त्र अनुज्ञप्ति अनुदत
करने से केवल इस आधार पर इनकार नहीं करेगा कि ऐसे व्यक्ति के स्वामित्व में पर्याप्त चल या अचल संपत्ति नहीं है। तो फिर इस परिस्थिति में जांच प्रतिवेदन अंचलाधिकारी, अंचल निरीक्षक व कर्मचारी से या फिर विगत तीन वर्षों का रिटर्न मांगने का क्या औचित्य है। जबकि आयकर अधिनियम की धारा 10 1 के अनुसार कृषक को रिटर्न जमा करने की बाध्यता भी नहीं है।
वह भी नये अनुज्ञप्ति के लिए नहीं बल्कि पुराने अनुज्ञप्ति के नवीनीकरण के संदर्भ में? अधिवक्ताओं ने सवालिया लहजे में कहा है कि इस तरह का नियम उस सिर्फ गोड्डा जिला में ही क्यों?
आगे लिखा है कि माननीय न्यायालय के फैसलों से स्पष्ट होता है कि चुनाव जैसे संवेदनशील मामलों में अग्नेयास्त्र को जमा करवाना असंवैधानिक है। चुनाव के मौके पर शस्त्र जमा करवाना जीवन रक्षा के मौलिक अधिकार का हनन और दुश्मनों को जान- माल का नुकसान के लिए विशेष अवसर प्रदान करने जैसा है।
अधिवक्ताओं ने लिखा है कि यथेष्ट राशि का ससमय चालान, अभीष्ट दस्तावेज एवं शपथ पत्र आवेदन के साथ दाखिल करने के बावजूद आर्म्स एक्ट की धारा 21 के तहत शस्त्र को जमा करने का आदेश कैसे न्यायसंगत है?
लिखा है कि न्यायालय के फैसले से यह भी स्पष्ट है कि शस्त्र भी अब पैतृक संपत्ति है । अनुज्ञप्तिधारियों की मृत्य अथवा 70 की उम्र के पश्चात उनके उत्तराधिकारी को निर्धारित समय-सीमा के अंदर अनुज्ञप्ति के निर्गत किये जाने तथा शस्त्र के हस्तान्तरण की बाध्यता है। भला ऐसी स्थिति में शस्त्र जमा करने का आदेश युक्तियुक्त कैसे समझा जाएगा?
फैसले का हवाला देते हुआ लिखा है कि नये अनुज्ञप्ति को जारी किये जाने की अधिकतम समय- सीमा 75 दिन तथा विशेष परिस्थिति में अधिकतम एक साल है ‘ आर्म्स एक्ट में यह भी लिखा है कि समय- सीमा बीतने के बाद यदि जांच प्रतिवेदन नहीं आता है तो यह समझते हुए कि आवेदक के विरुद्ध कुछ भी नहीं है, अग्रतर कारवाई की जाएगी, तो फिर नवीनीकरण में वर्षों -वर्ष क्यों?
अधिवक्ताओं ने गृह मंत्री श्री शाह से निवेदन पूर्वक पूछा है कि इस डिजिटल युग में जांच में विलंब, अधूरे प्रतिवेदन, कुछ उच्च पदाधिकारियो, नेता या रसुखदारों का चुन- चुन कर क्यों और कैसे हो रहा है? विलंब का कारण क्या है और दोषी से स्पष्टीकरण कौन पूछेगा?
आगे सवाल किया है कि आर्म्स एक्ट संशोधन 2016 में स्पष्ट निर्देश है कि अब कोई भी शस्त्र अनुज्ञप्ति परिवार के एक से ज्यादा सदस्य के नाम से जारी होगा तथा एक ही अनुज्ञप्ति पुस्तिका में एक के अलावा शस्त्र भी अंकित किया जाएगा । इसके लिए क्षेत्र- सीमा की बाध्यता भी समाप्त कर दी गई है । इसे व्यवहार में कब लाया जाएगा? गृहमंत्री से गुहार लगाते हुए आगे लिखा है कि सच है कि जिस व्यवस्था में नाजायज लोगों के लिए हथियार आसानी से उपलब्ध हो और जायज लोगों के हाथ खाली हो, वहां इंसान अपनी अस्मिता गिरवी रखने को या घर छोड़ पलायन को मजबूर हो जाता है।
ज्ञापन भेजने वाले अनुज्ञप्तिधारी अधिवक्ताओं में जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष सुशील कुमार झा, सर्वजीत झा, ज्योतिन्द्र कुमार झा, दिनेश प्रसाद यादव, संदीप कुमार पाण्डेय, दिवाकर यादव, प्रदीप कुमार सिंह, पीके मिश्रा, सुबोध कुमार पंजियारा, किशोर कुमार मिश्रा आदि ने गृह मंत्री से गुजारिश करते हुए लिखा है कि उपरोक्त वर्णित परिस्थिति में माननीय न्यायालय के आदेश के आलोक में आम शस्त्र अनुज्ञप्तिधारियों के लिए अनुज्ञप्ति के नवीनीकरण की प्रक्रिया को सहज- सुलभ कर उन्हें न्याय संगत राहत प्रदान करने की कृपा की जाए।
आवेदन की प्रति मुख्य सचिव झारखंड सरकार, आयुक्त दुमका एवं उपायुक्त गोड्डा को भी प्रेषित की गयी है